यह कविताये सेना के तीनों अंगों के सैनिको के अनà¥à¤¤à¤ƒà¤à¤¾à¤µà¥‹ से पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤¿à¤¤ है। अधिकांश कविताà¤à¤‚ वीर रस को आधार बनाकर वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤ की गयी हैं। à¤à¤• सैनिक का जीवन किन-किन à¤à¤¾à¤µà¥‹à¤‚ से पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤¿à¤¤ होता रहता है, उसे मैंने अपने सीमित जà¥à¤žà¤¾à¤¨ के माधà¥à¤¯à¤® से लिखने का पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ किया है। मैं अपनी तà¥à¤°à¤¾à¥à¤Ÿà¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के लिठकà¥à¤·à¤®à¤¾à¤ªà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥à¥€ हूà¤à¥¤
फà¥à¤²à¤¾à¤‡à¤Ÿ लेफà¥à¤Ÿà¤¿à¤¨à¥‡à¤‚ट सà¥à¤¬à¥‹à¤§ दीकà¥à¤·à¤¿à¤¤
लेखक का जनà¥à¤® 18 जून, 1987 को पशà¥à¤šà¤¿à¤® बंगाल के बागडोगरा शहर में à¤à¤• सैनिक असà¥à¤ªà¤¤à¤¾à¤² में हà¥à¤† था। आप की शिकà¥à¤·à¤¾-दीकà¥à¤·à¤¾ à¤à¤• सैनिक परिवार में हà¥à¤ˆà¥¤ आपके पिता जी à¤à¤µà¤‚ दादा जी à¤à¥€ थल सेना में थे। पिता जी शà¥à¤°à¥€ देवी शंकर दीकà¥à¤·à¤¿à¤¤ थल सेना से सेवानिवृतà¥à¤¤ है, à¤à¤µà¤‚ दादा जी सà¥à¤µ. शà¥à¤°à¥€ हरदयाल दीकà¥à¤·à¤¿à¤¤
दà¥à¤µà¤¿à¤¤à¥€à¤¯ विशà¥à¤µ यà¥à¤¦à¥à¤§ के समय थल सेना में थे। सनॠ1994 से लेखक कानपà¥à¤° में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ है à¤à¤µà¤‚ पैतà¥à¤°à¤¾à¤• निवास कानपà¥à¤° से 50 किमी उतà¥à¤¤à¤°-पशà¥à¤šà¤¿à¤® की ओर उतà¥à¤¤à¤°à¥€à¤ªà¥‚रा नामक सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर है, जो कि गंगा तट से कà¥à¤› किमी की दूरी पर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ है। लेखक की पà¥à¤°à¤¾à¤°à¤‚à¤à¤¿à¤• शिकà¥à¤·à¤¾ केनà¥à¤¦à¥à¤°à¥€à¤¯ विदà¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ से हà¥à¤ˆà¥¤ लेखक ने à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ वायॠसेना में 14 दिसमà¥à¤¬à¤° 2013 को सेना की à¤à¤¡à¤®à¤¿à¤¨à¤¿à¤¸à¥à¤Ÿà¥‡ªà¤¶à¤¨ बà¥à¤°à¤¾à¤‚च में कमीशन पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ किया। लेखक ने छतà¥à¤°à¤¾à¤ªà¤¤à¤¿ शाहूजी महाराज विशà¥à¤µà¤µà¤¿à¤¦à¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ कानपà¥à¤° से संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ à¤à¤µà¤‚ अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¥€ à¤à¤¾à¤·à¤¾ से सà¥à¤¨à¤¾à¤¤à¤• की परीकà¥à¤·à¤¾ पà¥à¤°à¤¥à¤® शà¥à¤°à¥‡à¤£à¥€ से उतà¥à¤¤à¥€à¤°à¥à¤£ की à¤à¤µà¤‚ राजनीतिक शासà¥à¤¤à¥à¤°à¤¾ से परासà¥à¤¨à¤¾à¤¤à¤• की शिकà¥à¤·à¤¾ पà¥à¤°à¤¥à¤® शà¥à¤°à¥‡à¤£à¥€ में उतà¥à¤¤à¥€à¤°à¥à¤£ की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ की।
लेखक मारà¥à¤¶à¤² अरà¥à¤œà¤¨ सिंह के जीवन से बचपन से ही पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤¤ थे à¤à¤µà¤‚ इसी कारण आपको वायॠसेना मेें आने का पà¥à¤°à¥‹à¤¤à¥à¤¸à¤¾à¤¹à¤¨ मिला। लेखक वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ में वायॠसेना में à¤à¤¯à¤° टैªà¤«à¤¿à¤• कंटà¥à¤°à¥‹à¤² आॅफिसर के रूप में अपनी सेवाà¤à¤‚ पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ कर रहे हैं।
लेखक वीर रस की कविताओं को तà¥à¤µà¤°à¤¿à¤¤ लिखने में दकà¥à¤· है। आपने 100 से अधिक वीर रस की कविताओं की रचना की है। इसके अतिरिकà¥à¤¤ आपने रतन टाटा ठमोटीवेशनल सà¥à¤Ÿà¥‹à¤°à¥€, सैनिक की कलम से, फà¥à¤²à¤¾à¤‡à¤‚ग बà¥à¤²à¥‡à¤Ÿ जैसी अनà¥à¤¯ पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤•à¥‹à¤‚ को à¤à¥€ लिखा है। लेखक खेल-कूद में à¤à¥€ विशेष रूचि रखते है। आपके नाम à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ वायà¥à¤¸à¥‡à¤¨à¤¾ में 350 किमी की मैराथन को पूरा करने का à¤à¥€ कीरà¥à¤¤à¤¿à¤®à¤¾à¤¨ है जो 11 दिन में पठानकोट से दिलà¥à¤²à¥€ तक
9 सितमà¥à¤¬à¤° से 19 सितमà¥à¤¬à¤°, 2015 में बनाया गया था। लेखक को à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ वायॠसेना में आयोजित हिनà¥à¤¦à¥€ पखवाड़ा दिवस में à¤à¤¾à¤— लेने पर कà¥à¤² दस बार से अधिक पà¥à¤°à¤¥à¤® पà¥à¤°à¤¸à¥à¤•à¤¾à¤° पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ हो चà¥à¤•à¤¾ है।
लेखक हिनà¥à¤¦à¥€ कविता, कहानी लेखन, निबंध लेखन, संसà¥à¤®à¤°à¤£, पà¥à¤°à¥‹à¤¤à¥à¤¸à¤¾à¤¹à¤¨ à¤à¤¾à¤·à¤£ जैसी विधाओं में पारंगत है। इसके अतिरिकà¥à¤¤ लेखक को जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤·, वेदशासà¥à¤¤à¥à¤°à¤¾, अंतरिकà¥à¤· विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ à¤à¤µà¤‚ देश विदेश की समसामयिक घटनाओं के अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ में विशेष रूचि है।
लेखक को 22 सितंबर 2019 को à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ वायà¥à¤¸à¥‡à¤¨à¤¾ अधà¥à¤¯à¤•à¥à¤· à¤à¤¯à¤° चीफ मारà¥à¤¶à¤² बिरेनà¥à¤¦à¥à¤° सिंह धनोआ परमविशिषà¥à¤Ÿ सेवामेडल अतिविशिषà¥à¤Ÿ सेवामेडल, यà¥à¤¦à¥à¤§ सेवामेडल, वायà¥à¤¸à¥‡à¤¨à¤¾ मेडल à¤.डी.सी. दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ हिनà¥à¤¦à¥€ के कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤°à¤¾ किठगठविशेष कारà¥à¤¯ के लिठराजधानी नई दिलà¥à¤²à¥€ में समà¥à¤®à¤¾à¤¨à¤¿à¤¤ किया। इस अवसर पर वरà¥à¤· 1990 से लेकर अब तक के सà¤à¥€ वायà¥à¤¸à¥‡à¤¨à¤¾ अधà¥à¤¯à¤•à¥à¤· उपसà¥à¤¥à¤¿à¤¤ थे।
मृतà¥à¤¯à¥ को बांधकर,
काल को टालकर,
समय को संà¤à¤¾à¤²à¤•à¤°,
जो धà¥à¤µà¤¨à¤¿ से तीवà¥à¤° चलता है,
सारथी बनकर ईशà¥à¤µà¤° à¤à¥€,
वायॠयोदà¥à¤§à¤¾ के संग रहता है।