नाम: डाॅ संदीप कुमार शर्मा
भू-अवतरण: 9 मई
शैक्षिक योग्यताएं: ’बीए आॅनर्स ;इतिहासद्ध
’एम ए ;इतिहासद्ध
’शोध प्रबंध
आजीविकाः स्वतंत्रा लेखन, निर्माता-निर्देशक
पुस्तकः बीस से अधिक पुस्तकें
ई-बुकः तीन
प्रसारणः
ऽ इलैक्ट्रिक मीडियाः विभिन्न चैनलों पर 600 से अधिक डाक्यूमेंट्री, सीरियल, लघु पिफल्में, स्पाट, कारपोरेट पिफल्में, एनीमेशन, आदि
ऽ आकाशवाणीः 100 से अधिक वार्ता, नाटक, पफीचर आदि
अभिनयः सोलह से अधिक सीरियल में
सदस्यः आॅथर्स गिल्ड आॅपफ इंडिया
ब्लागः लगभग 20
सम्मानः विभिन्न संगठनों और संस्थाओं द्वारा सम्मानित
संप्रतिः महरौली, नयी दिल्ली
About the Books
प्रकृति का सामान्य अर्थ हैµसंपूर्णता। यह कभी भी नहीं बताया जाता। समझाया जाता। केवल यह बता देने से कि कुदरत बचाओं, उससे प्रेम करों, संरक्षित करो, जल बचाओंµ वृक्ष लगाओं आदिµ आदि कापफी नहीं है। विद्यालयों में, संचार माध्यमों से, मंचों से, दृढ़ राजनीतिक इच्छा शक्ति, और लोभ-लालच-लालसा-ललक की नीति पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है। आज समय है कि उपर्युक्त बिन्दुओं का ठोस समाधन खोजा जाये।
प्रस्तुत पुस्तक शृंखला ‘‘प्रकृति की ओर’’ वर्तमान और भविष्य के समाज और पर्यावरण के साथ-साथ भूतकाल में प्रकृति के विज्ञान के साथ खिलवाड़ के दुष्परिणामों को भी आपके सम्मुख लाने का प्रयास है। आज हमारे सामने प्लास्टिक युग का भूत खतरे का भयावह दृश्य प्रस्तुत कर रहा है। समय रहते यदि प्लास्टिक दौर को समाप्त नहीं किया गया तो भविष्य के पचास वर्ष उपरान्त का दृश्य अकल्पनीय होगा।