एक साहित्यकार की वैचारिक अभिव्यक्ति समाज के जीवन्त धरातल को आधार बनाकर ही फूटता है। उसकी लेखनी का तेज इस बात पर निर्भर करता है कि उसका आत्मबोध कितना घनिष्ठ है। जहाँ तक कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद की बात है तो उनकी जीवन्त समझ को आँकना सूर्य को दीप दिखाने जैसा है।
उनकी लघु कथा हो या अल्प लघु कथा या पिफर उनकी वो कालजयी उपन्यास, एक ऐसी धरोहर है हमारे समक्ष, जिसे ज्वलन्त बनाये रखना हमारा कर्तव्य भी है और आवश्यकता भी। उनके द्वारा रचित ये कथाएं हमें एहसास कराती हैं कि वक्त के साथ-साथ हमारा सामाजिक ताना-बाना कितना कमजोर होता जा रहा है।