एक साहित्यकार की वैचारिक अभिव्यक्ति समाज के जीवन्त धरातल को आधार बनाकर ही फूटता है। उसकी लेखनी का तेज इस बात पर निर्भर करता है कि उसका आत्मबोध कितना घनिष्ठ है। जहाँ तक कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद की बात है तो उनकी जीवन्त समझ को आँकना सूर्य को दीप दिखाने जैसा है।
उनकी कथाओें में नारी का चरित्र-चित्रण बेहद मार्मिक एवं सौम्य लगता है। प्राचीन पृष्ठभूमि पर लिखी उनकी कहानियों का तो कोई सानी हीं नहीं है। चूँकि ये कहानियाँ गुलाम भारत के कालखण्ड में लिखी गई है अतः उस दौड़ के सामाजिक जीवन, भारत के ग्रामीण परिवेश को बेहद सटीक तरीके से दर्शाया गया है। पाठक उस कालखण्ड से खुद को बेहद सहज तरीके से जोड़ लेता है।