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Ankahe Ehsaas... Dil se
Ankahe Ehsaas... Dil se
Author: Rakesh Bhatia
ISBN: 9789390838059
Year: 2022
Pages: 142
Medium: Hindi
Publisher: The Book Line
Edition: 1st
₹
295.00
Price includes all taxes.
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Description
About the Book:
राकेश à¤à¤¾à¤Ÿà¤¿à¤¯à¤¾ का जनà¥à¤® सनॠ1959 में लà¥à¤§à¤¿à¤¯à¤¾à¤¨à¤¾ में हà¥à¤†à¥¤ शà¥à¤°à¥€ à¤à¤¾à¤Ÿà¤¿à¤¯à¤¾ करà¥à¤® से बैंकर रहे हैं किनà¥à¤¤à¥ मन से अतà¥à¤¯à¤‚त संवेदनशील, à¤à¤¾à¤µà¥à¤• पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ के हैं। आपने अपनी कविताओं के माधà¥à¤¯à¤® से दिलों के जजà¥à¤œà¤¬à¤¾à¤¤à¥‹à¤‚ को छà¥à¤† है। दिलों को जोड़ने वाली आपकी रचनाà¤à¤‚ हृदय को सà¥à¤ªà¤‚दित कर देती हैं। आपकी कृतियां हर धड़कते दिल की धड़कन - सी पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤¤ होती हैं।
मां को समरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ आपकी तेरे हाथों की दाल-रोटी कविता पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤• वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ को अपनी मां से जोड़ देती है। मां की आम दिनचरà¥à¤¯à¤¾ से जà¥à¥œà¥‡ काम को आपने बहà¥à¤¤ ही सहज शबà¥à¤¦à¥‹à¤‚ में असीमित à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾à¤“ं के साथ इस कविता में पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ किया है देश से दूर पदसà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ रहने के दौरान देश की मिटà¥à¤Ÿà¥€, हवा और अपनों का विरह लिठआपकी रचनाà¤à¤‚ पाठक को अशà¥à¤°à¥ - पà¥à¤²à¤¾à¤µà¤¿à¤¤ करने को मजबूर कर देती हैं। ‘घर को लौट के जाने वाली गाडियां’, ‘यह दूरियों का सफर’, ‘देश की मिटà¥à¤Ÿà¥€’ आदि कविताà¤à¤‚ इसी à¤à¤¾à¤µ से ओत-पà¥à¤°à¥‹à¤¤ हैं।
शà¥à¤°à¥€ राकेश à¤à¤¾à¤Ÿà¤¿à¤¯à¤¾ की बैंकिंग यातà¥à¤°à¤¾ 05 दिसंबर, 1980 में बैंक ऑफ बड़ौदा की पठानकोट शाखा से पà¥à¤°à¤¾à¤°à¤®à¥à¤ हà¥à¤ˆ थी। बैंक के 38 वरà¥à¤· 4 माह के बैंकिंग कारà¥à¤¯à¤•à¤¾à¤² में शà¥à¤°à¥€ à¤à¤¾à¤Ÿà¤¿à¤¯à¤¾ ने देश के विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ à¤à¤¾à¤—ों जैसे पठानकोट, अमृतसर, हलà¥à¤¦à¥à¤µà¤¾à¤¨à¥€, बरेली, मà¥à¤‚बई, नई दिलà¥à¤²à¥€ में बैंकिंग सेवाà¤à¤‚ दी हैं। शà¥à¤°à¥€ à¤à¤¾à¤Ÿà¤¿à¤¯à¤¾ की पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤à¤¾ तथा मेहनत का समà¥à¤®à¤¾à¤¨ करते हà¥à¤ बैंक ऑफ बड़ौदा ने आपको देश के बाहर केनà¥à¤¯à¤¾ तथा लंदन में à¤à¥€ बैंकिंग सेवाà¤à¤‚ पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करने का अवसर पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ किया। आप बैंक ऑफ बड़ौदा के नई दिलà¥à¤²à¥€ अंचल में महापà¥à¤°à¤¬à¤‚धक à¤à¤µà¤‚ अंचल पà¥à¤°à¤®à¥à¤– के पद से सेवानिवृतà¥à¤¤ होकर NIBSCOM (National Institute of Banking Studies and Corporate Management) नोà¤à¤¡à¤¾ में Director के रूप में पदसà¥à¤¥ रहे। अपने मन के à¤à¤¾à¤µà¥‹ को कविता या लेख के रासà¥à¤¤à¥‡ वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤ करना उनकी रूचि ही नहीं, आदत सी बन गई है।
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